फ़राज़-ए- सुख़न

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चंद शेर आपकी नज़र कर रहा हूँ


"खिड़कियाँ"


मौसम-ए-ख़िज़ां में भी बहार होती खिड़कियाँ
उनके आ जाने से यूँ गुलज़ार होती खिड़कियाँ

ग़ुर्फ़े से यूँ भेजना उनका वो पैगाम-ए-वफ़ा
देखते हैं हम यूँ ही बेतार होती खिड़कियाँ

फिर वही शब्-ए-फ़िराक़ ओ बा-हज़ारां इश्तियाक़
फिर किसी तूफ़ान से दो चार होती खिड़कियाँ

"भारद्वाज"

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