कब्र
बंजर वीरानों में नाचूँ, जलते दिल की ख़ाक उड़ाउँ
सोच रहा हूँ दिल के अंदर ख़्वाबों की एक कब्र बनाऊं
टूटे, बिखरे, दबे हुए से अरमानों से उसे सजाऊँ
बहते सूखते चंद कतरे जो कहीं लहू के झलक रहे हैं
उनसे थोड़ा रोगन करके अपनी किस्मत पे इतराऊं
सोच रहा हूँ दिल के अंदर ख़्वाबों की एक कब्र बनाऊं
कब से अकेले में भीतर ही भीतर से जो झाँक रही है
जो उदास और रोज़ उदासी हो कर मुझको ताक रही है
उसी उदासी को बहला कर उसके थोड़े नाज़ उठाऊं
सोच रहा हूँ दिल के अंदर ख़्वाबों की एक कब्र बनाऊं
टीस, चुभन के गहने ढूंढूं, जो अब कुछ कुछ टूट गए हैं
दुःख के सारे रेशे ढूंढूं जो कुछ पीछे छूट गए हैं
दर्द के सारे धागे जोड़ूँ और अच्छे से गाँठ लगाऊं
सोच रहा हूँ दिल के अंदर ख़्वाबों की एक कब्र बनाऊं
बंजर वीरानों में नाचूँ, जलते दिल की ख़ाक उड़ाउँ
सोच रहा हूँ दिल के अंदर ख़्वाबों की एक कब्र बनाऊं
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