उन्स
मेरी इस उन्स का कुछ तो इलाज हो जाये
मुझसे मिलता हुआ उनका मिजाज़ हो जाये
ये लाज़िम हो, अर्ज़-ए-इल्तिज़ा सुननी ही पड़े
इस ज़माने का कुछ ऐसा रिवाज़ हो जाये
क्यों बेकरारी सी नुमायां है इन आँखों में
क्यों ना इनपर भी थोडा हिजाब हो जाये
ये पर्दा ठीक है महफ़िल में लगा रहने दो
कुछ गम-ए-आशिक़ी, कुछ उनका लिहाज़ हो जाये
जानलेवा है तासीर-ए-मर्ज़-ए-इश्क़ सुनो
कहीं ना ये आज़ार ला-इलाज हो जाये
मौलिक कृति
"भारद्वाज"
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